25 Mar Santoshi Mata Aarti
संतोषी माँ आरती
Audio Courtesy: VedicYuga Bhajan Archives
Aarti in Hindi
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता
अपने सेवक जन की, सुख-सम्पत्ति दाता॥
सुन्दर चीर सुनहरी, माथे मुकुट छवि छाजे
हीरे मोती माणिक, अंग-अंग साजे॥
गले मोतियन माला, शीश पर छत्र धरो
हाथ में कलश लिए, वरदान करो॥
शुक्रवार प्रिय मानत, सेवक जो करे
उसकी मनोकामना, तू पूर्ण करे॥
घी और शक्कर का, भोग लगावे
नारियल का बीज, माता को चढ़ावे॥
जो कोई ध्यावे तेरा, सुख सम्पत्ति पावे
दुखी दरिद्री मिट जावे, सुखी हो जावे॥
संतोषी माता की, आरती जो गावे
उसके घर में सदा, शांति रह जावे॥
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता
अपने सेवक जन की, सुख-सम्पत्ति दाता॥
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता
अपने सेवक जन की, सुख-सम्पत्ति दाता॥
सुन्दर चीर सुनहरी, माथे मुकुट छवि छाजे
हीरे मोती माणिक, अंग-अंग साजे॥
गले मोतियन माला, शीश पर छत्र धरो
हाथ में कलश लिए, वरदान करो॥
शुक्रवार प्रिय मानत, सेवक जो करे
उसकी मनोकामना, तू पूर्ण करे॥
घी और शक्कर का, भोग लगावे
नारियल का बीज, माता को चढ़ावे॥
जो कोई ध्यावे तेरा, सुख सम्पत्ति पावे
दुखी दरिद्री मिट जावे, सुखी हो जावे॥
संतोषी माता की, आरती जो गावे
उसके घर में सदा, शांति रह जावे॥
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता
अपने सेवक जन की, सुख-सम्पत्ति दाता॥
संतोषी माता की आरती 2
मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की ।
जय जय संतोषी माता जय जय माँ ॥
बड़ी ममता है बड़ा प्यार माँ की आँखों मे ।
बड़ी करुणा माया दुलार माँ की आँखों मे ।
क्यूँ ना देखूँ मैं बारम्बार माँ की आँखों मे ।
दिखे हर घड़ी नया चमत्कार आँखों मे ।
नृत्य करो झूम झूम, छम छमा छम झूम झूम, झांकी निहारो रे ॥
सदा होती है जय जय कार माँ के मंदिर मे ।
नित्त झांझर की होवे झंकार माँ के मंदिर मे ।
सदा मंजीरे करते पुकार माँ के मंदिर मे ।
वरदान के भरे हैं भंडार, माँ के मंदिर मे ।
दीप धरो धूप करो, प्रेम सहित भक्ति करो, जीवन सुधारो रे ॥
जय जय संतोषी माता जय जय माँ ॥
मझधार में मैं अटकी, बेडा पार करो माँ।
< हे माँ संतोषी,माँ संतोषी॥
बैठी हूँ बड़ी आशा से तुम्हारे दरबार में,
क्यूँ रोये तुम्हारी बेटी इस निर्दयी संसार में।
पलटादो मेरी भी किस्मत, चमत्कार करो माँ,
मझधार में मैं अटकी, बेडा पार करो माँ॥
मेरे लिए तो बंद है दुनिया की सब राहें,
कल्याण मेरा हो सकता है, माँ आप जो चाहें।
चिंता की आग से मेरा उद्धार करो माँ,
मझधार में मैं अटकी, बेडा पार करो माँ॥
दुर्भाग्य की दीवार को तुम आज हटा दो,
मातेश्वरी वापिस मेरे सुहाग लौटा दो।
इस अभागिनी नारी से कुछ प्यार करो माँ,
मझधार में मैं अटकी, बेडा पार करो माँ॥
करती हूँ तुम्हारा व्रत मैं, स्वीकार करो माँ,
मझधार में मैं अटकी, बेडा पार करो माँ।
हे माँ संतोषी,माँ संतोषी॥
मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की ।
जय जय संतोषी माता जय जय माँ ॥
बड़ी ममता है बड़ा प्यार माँ की आँखों मे ।
बड़ी करुणा माया दुलार माँ की आँखों मे ।
क्यूँ ना देखूँ मैं बारम्बार माँ की आँखों मे ।
दिखे हर घड़ी नया चमत्कार आँखों मे ।
नृत्य करो झूम झूम, छम छमा छम झूम झूम, झांकी निहारो रे ॥
सदा होती है जय जय कार माँ के मंदिर मे ।
नित्त झांझर की होवे झंकार माँ के मंदिर मे ।
सदा मंजीरे करते पुकार माँ के मंदिर मे ।
वरदान के भरे हैं भंडार, माँ के मंदिर मे ।
दीप धरो धूप करो, प्रेम सहित भक्ति करो, जीवन सुधारो रे ॥
जय जय संतोषी माता जय जय माँ ॥
संतोषी माता का भजन
करती हूँ तुम्हारा व्रत मैं, स्वीकार करो माँ,मझधार में मैं अटकी, बेडा पार करो माँ।
< हे माँ संतोषी,माँ संतोषी॥
बैठी हूँ बड़ी आशा से तुम्हारे दरबार में,
क्यूँ रोये तुम्हारी बेटी इस निर्दयी संसार में।
पलटादो मेरी भी किस्मत, चमत्कार करो माँ,
मझधार में मैं अटकी, बेडा पार करो माँ॥
मेरे लिए तो बंद है दुनिया की सब राहें,
कल्याण मेरा हो सकता है, माँ आप जो चाहें।
चिंता की आग से मेरा उद्धार करो माँ,
मझधार में मैं अटकी, बेडा पार करो माँ॥
दुर्भाग्य की दीवार को तुम आज हटा दो,
मातेश्वरी वापिस मेरे सुहाग लौटा दो।
इस अभागिनी नारी से कुछ प्यार करो माँ,
मझधार में मैं अटकी, बेडा पार करो माँ॥
करती हूँ तुम्हारा व्रत मैं, स्वीकार करो माँ,
मझधार में मैं अटकी, बेडा पार करो माँ।
हे माँ संतोषी,माँ संतोषी॥
संतोषी माता व्रत, कथा और पूजन विधि संतोषी माता के पिता गणेश ,माता सिद्धि – बुद्धि हैं .इनकी पूजा से धन .धान्य ,सोना ,चाँदी ,मोती,मूँगा ,रत्नों से भरा परिवार ,कमाई – धंधे में बरकत ,दरिद्रता दूर ,कलह -क्लेश का नाश ,सुख – शांति का प्रकाश ,बालकों की फुलवारी ,धंधे में मुनाफे की कमाई भारी ,मन की कामना पूर्ण ,शोक विपत्ति चिंता सब दूर. संतोषी माता का लो नाम ,जिससे बन जाएँ सारे काम . बोलो – संतोषी माता की जय .
संतोषी माता व्रत की पूजन विधि
- कथा के पूर्व कलश को जल से भरे ,उसके ऊपर गुड़ -चने से भरा कटोरा रखें .इस व्रत को करने वाला कथा कहते – सुनते समय हाथ में गुड़ में भुने हुए चने रखे .
- कथा समाप्त होने पर आरती होने के बाद ,हाथ का गुड़ चना गौ को खिलावें .कलश पर रखा हुआ गुड़ चना सबको प्रसाद के रूप में बाँट दे. कलश के जल को घर में सब जगह छिडके तथा बचे हुए जल को तुलसी की क्यारी में सींच देवे.
- कथा के पश्चात दिन में केवल एक बार ही भोजन को ग्रहण करें .भोजन में खटाई व खट्टे पदार्थ का प्रयोग न करें .
- सोलह शुक्रवार अथवा मनोकामना पूर्ण होने पर व्रत का उद्धापन करें .
- व्रत के उद्दापन में अढ़ाई किलो खाजा ,मोमनदार पूड़ी ,खीर ,चने का साग एवं नैवेद्य रखें .घी का दीपक जला संतोषी माता की जय – जयकार बोल नारियल फोड़े. इसीदिन ,घर में कोई खटाई नहीं खावे ,खट्टी वस्तु खाने से माता का कोप होता है .इसीलिए उद्दापन के दिन साग या किसी वस्तु में खटाई न डालें ,न आप खाएँ और न किसी दूसरे को ही खाने दें .इस दिन आठ लड़कों को भोजन कराएँ .देवर ,जेठ ,घर – कुटुंब के मिलते हों तो दूसरों को नहीं बुलाना चाहिए .अगर कुटुंब में न मिले तो ब्राह्मणों के ,रिश्तेदारों के अथवा पास – पड़ोसियों के लड़के बुलाएँ .उन्हें खटाई की वस्तु रहित भोजन करा यथाशक्ति दक्षिना (नगद पैसा न दें ) कोई मीठी वस्तु ही दें . व्रत रखने वाले कथा सुन – प्रसाद लें .एक समय भोजन करें . इससे माता प्रसन्न होती हैं .